Wednesday 8 February 2012

Saumnasya Sukta from Atharvaveda

 
  वेद की कविता
                   प्रभुदयाल मिश्र
                    सैामनस्य
( अथर्ववेद कांड-3, सूक्त 30, ऋषि अथर्वा और देवता चंद्रमा)
  सहृदयं सांमनस्यमविद्वेषं कृणेामि वः
  अन्यो अन्यमभि हर्यत वत्सं जातमिंवाध्न्या  1
  सहृदय, सौमनस्य, ईर्ष्याहीनता का
  तुम्हारे हित
  मैं वरण करता
 प्रेम से तुम परस्पर रहो
 जैसे गाय बछड़ा
 चाहती अपना
 अनुव्रतः पितुः पुत्रो मात्रा भवतु संमनाः
जाया पत्ये मधुमतीं वाचं वदतु शन्तिवाम्    2
करे अनुवर्तन पिता का पुत्र
मां से मन मिले उसका
भार्या मधुर वाणी युक्त
पति से शान्त स्वर बोले
मा भ्राता भ्रातरं द्विक्षन्मा स्वसारमुत स्वसा
सम्यंचः सव्रता भूत्वा वाचं वदतु भद्रया    3
बन्धु से न बन्धु ईर्ष्या करे
बहिन का बहिन से न हो बैर
कार्य, मन से सभी तुम रह एक
वचन बोलो सदा ही शुभतर
येन देवा न वियन्ति नो च विद्विषते मिथः
तत्कृण्मो ब्रह्म वो गृहे संज्ञानं पुरुषेभ्यः    4
कभी जिससे नहीं हो प्रतिरोध
जिससे हो नहीं विद्वेष, संशय भी
तुम्हारे घर रहे ऐसी बुद्धि
जो संज्ञान है उत्तम
ज्यायस्वन्तश्चित्तिनो मा वि यौष्ट संराधयन्तः सधुराश्चरन्तः
अन्यो अन्यस्मै वल्गु वदन्त एत सध्रीचीनान्वः संमनसस्कृणेामि  5
बड़ों का मान तुम सब करो
उत्तम वृत्ति
साधनरत, सफलता मिलेगी
चक्र के जैसे अरे रह एकजुट
अलग मत होना
वचन कहते मधुर तुम चलो
पुरुषार्थी बनो, आगे
एक सा मन, बुद्धि
देता हूं
समानी प्रपा सह वोऽन्नभागः समाने योक्त्रे सह वो युनज्मि
सम्यश्चोऽग्निं सपर्यतारा नाभिमिवाभितः         6
तुम्हारा नीर-तट हो एक
सम हो भाग भोजन का
श्रम का दान तुम मिल करो
सब की प्रार्थना हो एक
चक्र में जैसे अरे मिलकर
सब साथ चलते हैं
सध्रीचीनान्वः संमनसस्कृणोम्येकश्नुष्टीन्त्संवननेन सर्वान्
देवा इवामृतं रक्षमाणाः सायंप्रातः सौमनसो वो अस्तु   7
साथ मिलकर काम तुम सब करो
मन उत्तम
सेवा भाव तुम में हो
एक हो नेतृत्व
प्रातः, शाम मन परिपूर्ण
हों अति हर्ष से
अमृतपायी देव जैसे
रहा करते थे   ।

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