इन्द्र
प्रभुदयाल मिश्र
( इन्द्र ऋग्वेद का सबसे प्रधान देवता है । इन्द्र के व्यक्तित्व में साकार और निराकार ईश्वर के स्वरूप का अद्भुत सम्मिश्रण हुआ है । ‘वेद की कविता’ के रचनाकार श्री प्रभुदयाल मिश्र ने इस काव्यान्तर में सार्वलौकिक कविता के मूल तत्व प्रार्थना, भक्ति, आशा, अपेक्षा और शिल्प का प्रभावी ताना बाना संजोया है । संपादक )
वह मनस्वी देव
जिसने जन्मते पहले पहल
कर्म से अपने अलंकृत कर दिया सुर लोक
कंप उठे थे एक बल जिसके
धरा- आकाश
अति बलशील वह
है इन्द्र हे मानव । 1 ।
डगमगाती भूमि को जिसने किया सुस्थिर
क्षुब्ध शिखरों को तथा
जिसने किया संयत
वही परिमापक अमित आकाश का
अखिल व्रह्माण्ड का कारण
सुनो है इन्द्र हे मानव । 2 ।
मारकर अहि, वृत्र
जिसने सप्त धारायें बर्हाइं
मुक्त करता धेनु जो
वल-वंधनों से
बादलों के बीच बन
बिजली कड़कता
युद्ध में जो सर्व संहर्ता
वही तो इन्द्र है, मानव । 3 ।
विश्व को जिसने किया
गतिशील, चंचल भी
बनाए वर्ण जिसने श्रेष्ठ, मध्यम
व्यवस्था से
लक्ष्य को संप्राप्त जो करता कि
जैसे श्वान प्राप्त कर आखाद्य ले लेता
वही है इन्द्र हे मानव । 4 ।
कहंा वह घनघेार हैे
कुछ पूछते
कुछ कहते कि वह
है ही नहीं
शत्रुओं को ध्वस्त कर
श्री हीन जो करता
श्रद्धेय जो
वह है इन्द्र हे मानव । 5 ।
धनी, निर्धन, ब्राह्मण
कवि, भक्त सबका नियोजक, प्रेरक
शिर- त्राण धारी
सोमयाजी ब्राह्मण का
एक जो रक्षक
वह है इन्द्र, हे मानव । 6 ।
अश्व, गायें, ग्राम, रथ
सब का नियामक
दिवाकर, उषा का सर्जक
जल संवहनकर्ता एक जो
वह है इन्द्र, हे मानव । 7 ।
भूमि, नभ जिसको बुलाते
आत्म रक्षा
श्रेष्ठ, लघु, अरि, मित्र
जिसके सभी आश्रित
रथ समाश्रित
रण विजय में
वह है इन्द्र, हे मानव । 8 ।
विजय जिसकी कृपा आश्रित
वीर पाता
युद्धरत जिसको बुलाते
आत्म रक्षा
विश्व का जो स्वयं है प्रतिमान
अच्युत च्युत करता
है वह इन्द्र, हे मानव । 9 ।
वज्र से जो मारता है
पापियों, अपराधियों को
दर्प जो सहता नहीं बलवान का
शत्रुहन्ता देव
हे वह इन्द्र हे मानव । 10 ।
छुपी पर्वत कंदरा से
वर्ष बीते
असुर शंबर को निकाला
जलों के अवरोधकर्ता
सुप्त, पसरे
असुर अहि को मारता जो
वह है इन्द्र, हे मानव । 11 !
सप्त धनुषी मेघ
नदियां सात सिरजीं
तथा रोहिण असुर मारा
वज्र से निज
जिससे वृद्धिगत द्युलोक
है वह इन्द्र, हे मानव । 12 ।
भूमि, नभ झुक नमन करते
शक्ति से गिरि भीत
जिसकी सदा हैं
सोम पायी, अंग दृढ़तर
वज्रधारी
है वह इन्द्र, हे मानव । 13 ।
बचाता यजमान को जो
सोम देते
और वह जो मंत्रद्वारा
आत्मरक्षा मांगता
वचन उत्तम
मंत्र द्वारा
अन्न वर्धित
है वह इन्द्र हे मानव । 14 ।
धन, सुयश, अनुदान दाता
सत्यव्रत
सोम रस का पान करते
यज्ञ रत
हम सभी प्रिय पात्र
उत्तम विभव युत
गान करते हैं
अमर देवेन्द्र का । 15 ।
35, Eden Garden कोलार, रोड, भोपाल
प्रभुदयाल मिश्र
( इन्द्र ऋग्वेद का सबसे प्रधान देवता है । इन्द्र के व्यक्तित्व में साकार और निराकार ईश्वर के स्वरूप का अद्भुत सम्मिश्रण हुआ है । ‘वेद की कविता’ के रचनाकार श्री प्रभुदयाल मिश्र ने इस काव्यान्तर में सार्वलौकिक कविता के मूल तत्व प्रार्थना, भक्ति, आशा, अपेक्षा और शिल्प का प्रभावी ताना बाना संजोया है । संपादक )
वह मनस्वी देव
जिसने जन्मते पहले पहल
कर्म से अपने अलंकृत कर दिया सुर लोक
कंप उठे थे एक बल जिसके
धरा- आकाश
अति बलशील वह
है इन्द्र हे मानव । 1 ।
डगमगाती भूमि को जिसने किया सुस्थिर
क्षुब्ध शिखरों को तथा
जिसने किया संयत
वही परिमापक अमित आकाश का
अखिल व्रह्माण्ड का कारण
सुनो है इन्द्र हे मानव । 2 ।
मारकर अहि, वृत्र
जिसने सप्त धारायें बर्हाइं
मुक्त करता धेनु जो
वल-वंधनों से
बादलों के बीच बन
बिजली कड़कता
युद्ध में जो सर्व संहर्ता
वही तो इन्द्र है, मानव । 3 ।
विश्व को जिसने किया
गतिशील, चंचल भी
बनाए वर्ण जिसने श्रेष्ठ, मध्यम
व्यवस्था से
लक्ष्य को संप्राप्त जो करता कि
जैसे श्वान प्राप्त कर आखाद्य ले लेता
वही है इन्द्र हे मानव । 4 ।
कहंा वह घनघेार हैे
कुछ पूछते
कुछ कहते कि वह
है ही नहीं
शत्रुओं को ध्वस्त कर
श्री हीन जो करता
श्रद्धेय जो
वह है इन्द्र हे मानव । 5 ।
धनी, निर्धन, ब्राह्मण
कवि, भक्त सबका नियोजक, प्रेरक
शिर- त्राण धारी
सोमयाजी ब्राह्मण का
एक जो रक्षक
वह है इन्द्र, हे मानव । 6 ।
अश्व, गायें, ग्राम, रथ
सब का नियामक
दिवाकर, उषा का सर्जक
जल संवहनकर्ता एक जो
वह है इन्द्र, हे मानव । 7 ।
भूमि, नभ जिसको बुलाते
आत्म रक्षा
श्रेष्ठ, लघु, अरि, मित्र
जिसके सभी आश्रित
रथ समाश्रित
रण विजय में
वह है इन्द्र, हे मानव । 8 ।
विजय जिसकी कृपा आश्रित
वीर पाता
युद्धरत जिसको बुलाते
आत्म रक्षा
विश्व का जो स्वयं है प्रतिमान
अच्युत च्युत करता
है वह इन्द्र, हे मानव । 9 ।
वज्र से जो मारता है
पापियों, अपराधियों को
दर्प जो सहता नहीं बलवान का
शत्रुहन्ता देव
हे वह इन्द्र हे मानव । 10 ।
छुपी पर्वत कंदरा से
वर्ष बीते
असुर शंबर को निकाला
जलों के अवरोधकर्ता
सुप्त, पसरे
असुर अहि को मारता जो
वह है इन्द्र, हे मानव । 11 !
सप्त धनुषी मेघ
नदियां सात सिरजीं
तथा रोहिण असुर मारा
वज्र से निज
जिससे वृद्धिगत द्युलोक
है वह इन्द्र, हे मानव । 12 ।
भूमि, नभ झुक नमन करते
शक्ति से गिरि भीत
जिसकी सदा हैं
सोम पायी, अंग दृढ़तर
वज्रधारी
है वह इन्द्र, हे मानव । 13 ।
बचाता यजमान को जो
सोम देते
और वह जो मंत्रद्वारा
आत्मरक्षा मांगता
वचन उत्तम
मंत्र द्वारा
अन्न वर्धित
है वह इन्द्र हे मानव । 14 ।
धन, सुयश, अनुदान दाता
सत्यव्रत
सोम रस का पान करते
यज्ञ रत
हम सभी प्रिय पात्र
उत्तम विभव युत
गान करते हैं
अमर देवेन्द्र का । 15 ।
35, Eden Garden कोलार, रोड, भोपाल
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