Friday 25 March 2022

तुलसी मानस भारती का संपादकीय अप्रैल 2022

 श्री रामानुजाचार्य की विशिष्ट‘अद्वैत’ प्रतिमा 

 

5 फरवरी 2022 को प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने हैदराबाद में रामानुजाचार्य जी की हजारवीं जयंती पर आयोजित भव्य सहस्राब्दी समारोह में स्टेचू आफ ईक्वालिटी नाम की 216 फीट ऊंची और 120 किलो सोने की प्रतिमा का अनावरण कर इसका संस्थापन सम्पन्न किया । विश्व की दूसरी सबसे ऊंची इस प्रतिमा को स्वभावत: गिनीज़ बुक में भी स्थान मिला । श्री रामानुजाचार्य जी वर्ष 1017 में तमिलनाडु के श्रीपेरांबूदूर मैं जन्मे थे । उन्होने यद्यपि आदि शंकर की परंपरा में अद्वैत वेदान्त की शिक्षा प्राप्त की थी किन्तु श्री यमुनाचार्य जी से वैष्णव दीक्षा प्राप्त कर वे सर्व सुलभ विशिष्ट सगुण ब्रह्म मत ‘विशिष्ठाद्वैत’ के सूत्रधार बने जिससे भारत में सगुण भक्ति की रामाश्रयी और कृष्णाश्रयी धाराएँ निसृत हुईं । इनमें क्रमश: रामाश्रयी में द्वादश महाभाग संत और कृष्णाश्रयी में अष्टछाप (सूरदास, परमानन्ददास, कुम्भनदास, कृष्णदास, नन्ददास, चतुर्भुजदास, गोविन्दस्वामी और छीतस्वामी) भक्त कवियों ने जन्म लिया जिंहोने पराधीन भारत की चेतना में नूतन ऊर्जा का संचार किया । 

श्री रामानुजाचार्य की भक्ति परंपरा क्रम में चतुर्थ श्री राघवानंद के शिष्य श्री रामानन्द का जन्म 1299 ई. में प्रयाग में हुआ । इनके द्वादश महाभाग शिष्यों में एक शिष्य श्री नरहर्यानन्द थे जिनके शिष्य गोस्वामी तुलसीदास थे । इस प्रकार रामोपासकों और गोस्वामी तुलसीदास के कृतृत्व प्रेमियों के लिए यह ऐतिहासिक उपक्रम निश्चित ही बहुत महत्व का है ।

यहाँ प्रसङ्गत: द्वादश महाभागों के अर्थ संदर्भ का भी उल्लेख उचित प्रतीत होता है । संत परंपरा में इस श्लोक का मंगल पाठ आज भी एक सुविहित परंपरा है –

स्वयंभूर्नारद: शंभु: कुमार: कपिलो मनु:

प्रहलादो जनको भीष्मो बलिर्वैयासकिर्वयम । (श्रीमद्भाग्वत 6-20)  

इस श्लोक में यमराज अपने दूतों को समझाते हुये यह कह रहे हैं कि कि उक्त द्वादश महाभाग सम्पूर्ण भागवत रहस्य को जानने वाले हैं, अत: वे स्वयं भगवत् स्वरूप ही हैं । 

इस संत परंपरा में यह भी मान्यता है कि उक्त सभी महाभाग रामानन्द जी के शिष्यों के रूप में विश्व के कल्याणार्थ इस प्रकार उत्पन्न हुये तो जैसे ब्रह्मांड की समस्त विभूतियाँ ही इस धारा को इस प्रकार संपृक्त करने धरा धाम पर अवतीर्ण हुई थीं –1. श्री अनन्तानन्द जी ब्रह्मा जी, 2. श्री सुखानन्द जी शंकर जी,3. श्री योगानन्द जी कपिल देव जी, 4. श्री सुरसुरानन्द जी नारद जी,5. श्री गालवानन्द जी शुकदेव जी,6. श्री नरहरियानन्द जी सनतकुमार जी,7. श्री भावानन्द जी जनक जी,8. श्री कबीरदास जी प्रह्लाद जी,9. श्री पीपा जी राजा मनु जी,10. श्री रैदास जी धर्मराज जी,11. श्री धन्ना जाट जी राजा बलि जी और 12. श्री सेन भक्त जी भीष्म जी

आस्था पथ का यह पर्मैश्वर्य भक्ति मार्ग की पराकाष्ठा ही कही जा सकती है !

भक्ति की इस सगुण धारा के अधिसंख्य भारतीय जनों को आज निश्चित ही यह अत्यंत प्रसन्नता का विषय है कि इसके आदि नायक की मूर्ति स्थापना इतने भव्य स्वरूप में सम्पन्न हुई । इसे भारत की अखंडता और इसके मूल की गह्वरता में अनुभव कर भारतीय मानस के यह अति आह्लादित होने का स्पष्ट अवसर है । यह ज्ञातव्य है कि नाभादास जी ने कलियुग के भक्तों का आरम्भ श्री रामानुजाचार्य से ही करते हुये अपने प्रसिद्ध ग्रन्थ भक्तमाल के इस छप्पय में भगवान् के अवतारों की ही पुनरावृत्ति प्रकट स्वीकार की है -

(श्री)रामानुज उदार सुधानिधि अवनि कल्पपतरु

विष्णुस्वामी बोहित्थ सिंधु संसार पार करु

ध्वाचारज मेघ भक्ति  सर ऊसर भरिया।

निंबादित्य आदित्य कुहर अज्ञान जु हरिया॥

जनम करम भागवत धरम संप्रदाय थापी अघट।

चौबीस प्रथम हरि बपु धरे त्यों चतुर्व्यूह कलिजुग प्रगट॥

                            (भक्तमाल, उत्तरार्ध-28)