Sunday 26 June 2022

निर्वचन माह जून तुलसी मानस भारती 2022


निर्वचन (जून 22) 

                                    चिरजीवी – चिरंजीवी 

            सप्त चिरजीवियों के साथ चिरंजीवी मार्कंडेय जी को स्मरण करने की परंपरा सनातन है । यह इसलिए भी स्मरणीय है क्योंकि जहाँ चिरंजीविता एक कल्प की है (विभीषण को श्री राम ने वरदान दिया – करहु कल्प भर राज तुम) वहीं श्री मार्कंडेय जी तो भगवान शिव के प्रसाद से मुनि लोमश की ही तरह प्रलयांत तक चिरंजीवी हैं । फिर हम कागभुशुंडि जी को भी कैसे भुला सकते हैं जिनके संबंध में स्वयं भगवान शिव का साक्ष्य है - जासु नाश कल्पांत न होई ! अस्तु चिरजीवियों का एक पृथक क्रम भी कुछ इस प्रकार बनता है – अपने प्रत्येक रोम की संख्या में प्रति कल्प तक जीने वाले लोमश जी, कल्पांत के प्रलय के साक्षात्कर्ता मार्कण्डेय जी और कल्पांत को भी अतिक्रांत करते काग भुशुंडि जी !   

भगवान शिव की अहैतुकी कृपा प्राप्त यमराज की सत्ता का अतिक्रमण कर जन्मना अल्पायु के मार्कण्डेय जी को जब अपनी चिरंजीविता में भगवान की माया के दर्शन की कामना हुई तो उन्हें महाप्रलय का साक्षात्कार हुआ जिसके महाजल प्लावन की अनंतता में अंतत: भगवान ने जिस अलौकिक छ्वि के दर्शन कराये उन ‘बाल मुकुन्द’ का ‘चिरजीवी मार्कण्डेय’ द्वारा साक्षात्कार तो जैसे वैष्णव जनों की परम निधि ही है - 

करारविन्देन पदारविंदं मुखार्विन्दे विनिवेशयन्तम् 

वटस्य पत्रस्य पुटे शयानं बाल मुकुंदं मनसा स्मरामि ।    

यह सही है कि जीवन, जगत और परमात्मा की सत्ता का सत्य किसी निर्वचन का विषय नहीं है । क्रांत-दर्शी भारतीय ऋषियों की परा प्रज्ञा ने उसका साक्षात्कार किया है और उसे पश्यन्ती वाक् के जिस परार्द्ध में प्रकट किया है उसे समझने और समझाने की चेष्टा मात्र ही हो सकती है । 

दीर्घजीविता प्रत्येक जन्म लेने वाले प्राणी की जैसे जन्मना अभीप्सा है । अत: सात चिरजीवियों संबंधी यह श्लोक अपनी फलश्रुति सहित किसी के भी के मुखाग्र पर देखा जा सकता है – 

अश्वत्थामा बलिर्व्यासो हनूमांश्च विभीषण:

कृप: परशुरामश्च सप्तैते चिरजीविन: । 

सप्तैते संस्मरेन्नित्यं मार्कण्डेयमथाष्टमम्

जीवेद्वर्षशतं सोपि सर्वव्याधिविवर्जित: ॥  

इस सूची के द्वापर युगीन महाभारत के दो योद्धा अश्वत्थामा और उनके मामा कृपाचार्य की विशिष्ठता पर उनके कौरवों के पक्ष लेने को लेकर प्राय: प्रश्न उठता है जबकि शास्त्र सूचना के अनुसार ये महानुभाव अगले मन्वंतर में सप्त ऋषियों की नई सूची में सम्मिलित होने वाले हैं । यह तो स्पष्ट है कि ये ऋषि कुलीन है । श्री कृप गौतम ऋषि के कुल के हैं जबकि अश्वत्थामा भारद्वाज वंशज हैं । किन्तु मूलत: ये शिव गण हैं तथा महाभारत काल में अपनी विहित भूमिकाएँ संपादित कर अगले मन्वंतर में अपनी प्रतिष्ठा के लिए वर्तमान में तप निरत हैं  ।        

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तुलसी मानस भारती के अप्रेल 22 अंक में डा. प्रेम भारती का एक आलेख ‘मैं विभीषण’ छ्पा था । इस पर पाठकों की प्रतिक्रिया सकारात्मक थी । तथापि विभीषण द्वारा व्यक्त इस पीड़ा कि उनका नाम लोग क्यों नहीं रख रहे हैं, पर गुफा मंदिर, भोपाल के महंत श्री राम प्रवेश दास जी ने आगे यह कहा कि यह तब है जबकि विभीषण चिरजीवी हैं ! तथापि उनके द्वारा यह व्यावहारिक समाधान भी दिया गया कि नाम लोग संक्षिप्त, प्रवाही और परंपरा के प्रभाव में रखते हैं । और विभीषण तो वैसे भगवान की भक्ति में सर्वथा आप्तकाम ही हैं अत: उनमें किसी पीड़ा का भाव एक लक्षणा प्रयोग ही हो सकता है ।  


प्रभुदयाल मिश्र, प्रधान संपादक, तुलसी मानस भारती



 

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