Friday 24 December 2021

एक और भागीरथ / निर्वचन तुलसी मानस भारती माह जनवरी 2022

 गंगा को शिव-शीश तक लाने वाले एक और भागीरथ


विक्रम संवत् 2078 मार्गशीर्ष कृष्ण दशमी सोमवार (दिनांक 13 दिसंबर 2021) को प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने विश्वनाथ मंदिर कॉरीडोर के लोकार्पण के अवसर पर जब मुक्त कंठ से उन्होने शुद्ध संस्कृत उच्चार में श्री विश्वनाथ अष्टकम् के इस श्लोक का पाठ किया -


गङ्गा तरङ्ग रमणीय जटा कलापं


गौरी निरन्तर विभूषित वाम भागं


नारायण प्रियमनङ्ग मदापहारं


वाराणसी पुरपतिं भज विश्वनाथम् ॥


तो काशी की परम विभूति गोस्वामी तुलसीदास के मानस प्रेमियों को इस सोरठे का स्मरण भी बहुत स्वाभाविकता से हुआ होगा –


मुक्ति जन्म महि जानि ग्यान खानि अघ हानि कर


जहं बस संभु भवानि सो कासी सेइअ कस न । (किष्किंधाकाण्ड 1 ख)


त्रैलोक्य की नाभि जिसका प्रलय काल में भी तिरोधान नहीं होता होता ऐसी शिव के त्रिशूल पर बसी काशी जो आदि शंकराचार्य, नानक, राजा टोडरमल, दाराशुकोह, कबीर, रविदास, अहिल्या बाई, भारतेन्दु हरिश्चंद्र, जयशंकर प्रसाद और मदन मोहन मालवीय जैसे देदीप्त नक्षत्रों का महाकाश है, वह गोस्वामी तुलसीदास जी के अध्ययन और तपश्चर्या का प्रधान केंद्र थी । उन्होने अपने प्रथम गुरु नरहरयानन्द के मार्गदर्शन से सम्पूर्ण वेद ,वेदान्प, पुराण, इतिहास, दर्शन ज्ञान के तत्कालीन शीर्षस्थ शिक्षा केंद्र श्री शेष सनातन धाम, काशी में ही प्राप्त किया । गोस्वामी जी के संबंध में यह कथा भी प्रचलित है कि उनके द्वारा रामचरित मानस की रचना लोक-भाषा में करने पर काशी का जब विद्वत समुदाय उनके विरोध में खड़ा था तब बाबा विश्वनाथ ने राम चरित मानस को भारतीय शास्त्रों के शीर्ष पर स्थिर कर उसे सिरमौर के ग्रंथ की मान्यता दी । इतना ही नहीं जैसे उनके आशीर्वाद को वेदान्त के तत्कालीन महा मनीषी मधुसूदन सरस्वती ने इस श्लोक में अभिव्यक्ति भी प्रदान की –


आनन्दकानने ह्यस्मिंजंगमस्तुलसीतरु:। कवितामंजरी भाति रामभ्रमरभूषिता॥


राम चरित मानस में गोस्वामी जी पग-पग काशी का स्मरण करते चलते हैं । सबसे पहले वे मानस के मंगलाचरण प्रसंग में राम नाम महिमा गान करते हुये घोषणा करते हैं –


महां मंत्र जोइ जपत महेसू । कासी मुकुति हेतु उपदेसू ।


यहाँ वे बुध कौशिक ऋषि के प्रसिद्ध राम रक्षा स्तोत्र के संदर्भ ‘सहस्रनाम तत् तुल्यं राम नाम बरानने’


(हे पार्वती, भगवान शिव ने पार्वती को कहा, एक राम नाम विष्णुसहस्रनाम के सम्पूर्ण पाठ के समतुल्य है, अत: आप रामोच्चार कर अपना अनुष्ठान पूरा मान हमारे साथ भोजन गृहण कर सकती हैं), की संपन्नता का यह प्रमाण देते हैं –


सहस नाम सम सुनि सिव वानी । जपि जेयीं पिय संग भवानी


पश्चात जब भरद्वाज जी राम के संबंध में जिज्ञासा करते हैं तो उन्हें यह विदित है कि काशी को भगवान शिव ने मुक्ति का धाम बनाया है तथा यह उनकी यह सामर्थ्य राम नाम के कारण ही है, ऐसा स्वयं भगवान शिव बताते है –


आकरि चार जीव जग अहहीं । कासी मरत परम पद लहही


सोपि राम महिमा मुनि राया । सिव उपदेसु करत करि दाया ।


कहते हैं कि पार्वती ने भी कभी जब यह रहस्य पूछा तो भगवान शिव ने उन्हें कहा कि काशी में किसी के देह त्याग पर जब लोग ‘राम-राम सत्य है’ की घोषणा करते चलते हैं तो वे अपनी परम प्रसन्नता में मृतक को मुक्ति प्रदान कर देते हैं !


शिव की जटाओं में किलोल करने के लिए उत्तराभूमुख गंगा को काशी-विश्वनाथ के पार्श्व तक सुगम कर देने वाले भारतीय चेतना के सदियों, शताब्दियों और युग-युगांतर के संकल्प की इस पूर्णता पर सनातन मानव धर्म-संस्कृति की प्रतिनिधि पत्रिका ‘तुलसी मानस भारती’ अपने प्रबुद्ध पाठक समुदाय सहित अपने हर्ष के प्रतीकार्थ में इस अंक को ‘काशी-विशेष’ के रूप में प्रकाशित कर रही है ।


प्रभुदयाल मिश्र

प्रधान संपादक

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