सुषेण पर्व / डा. देवेंद्र दीपक/ इंद्रा पब्लिशिंग हाउस
‘आयुर्वेद’ का सिद्धान्त
और दर्शन पक्ष
प्रभुदयाल
मिश्र
‘आयुर्वेद’ प्रज्ञा के
आदिस्रोत ऋग्वेद का उपवेद है यद्यपि इसका विस्तार चतुर्थ वेद संहिता अथर्ववेद में
हुआ है। ऋग्वेद के मण्डल 2 के रुद्र सूक्त 33 में ऋषि गृत्स्मद प्रार्थना करते हैं
–
त्वादत्तेभी रुद्र शंतमेभि: शतं हिमा
(तुम्हारी दिव्य औषधियाँ बनाई प्रीतिकर/हमें
शतवर्ष जीवन दें।)
वेदों के भाष्यकार श्रीसातवलेकर तो औषधि-देव
अश्विनीकुमारों को विश्व सरकार का स्वास्थ्य मंत्री ही बताते हैं । वेद में वर्णन
आता है कि इन्होने किस प्रकार च्यवन को वृद्ध से युवा बनाया और अंधत्व से मुक्ति
दी। श्याब को तीन घाव लगे थे जिसे तत्काल चलने योग्य कर दिया । विश्पला की कटी हुई
टांग जोड़ दी, इत्यादि । आगे इस संबंध में बहुत कुछ तो इस काव्य
नाटक के रचनाकर डा. देवेन्द्र दीपक ने विज्ञात इतिहास के चरक और सुश्रुत के संदर्भ
से इस शास्त्र पर बहुत कुछ कहा ही है जिसे दोहराने की आवश्यकता नहीं है । किन्तु
जब नाटककार इस मंचीय विधा की प्रदर्शनीय कृति को ‘पर्व’ की संज्ञा देता है तो आज की संस्कृति के महाभारत के अठारह पर्वों में एक
और ‘पर्व’ का जुड़ना कहीं अधिक
प्रासांगिक हो जाता है । 18 पर्वों वाले महाभारत में तो औषधेय अनेक प्रसंग हो सकते
थे किन्तु अश्विनीकुमारों के पुत्र नकुल और सहदेव कुरुक्षेत्र की युद्ध-भूमि में
सदा ही उपस्थित थे । पर राम चिकित्सक तो दूर की बात, उनकी तो
अपनी कोई सेना भी साथ नहीं गई थी, अत: लक्ष्मण पर हुये घातक
प्रहार के निदान के लिए एक योग्य चिकित्सक की आवश्यकता उन्हें अपरिहार्य हो गई जिसके
लिए सुषेण के संदर्भों पर दीपक जी ने गहन शोध कर एक ‘भेषज-धर्म’ की संस्थापना के सूत्र खोजे हैं जो सार्वभौमिक
तौर पर महत्वपूर्ण हैं ।
एक कहानी या नाटक की कथावस्तु में आवश्यक इस रचना के
कथा नायक सुषेण के सामने आंतरिक और बाह्य दोनों ही प्रकार का अंतर्द्वंद्व
विद्यमान है । परंपरा से राम की भक्ति अथवा हनुमान का पराक्रम सुषेण की उपस्थिति
के उतने सशक्त आधार नहीं हो सकते थे, अत: विचारशील
रचनाकार ने इसमें ‘नेपथ्य की शक्ति’ सुषेण
की पत्नी सूर्या की परिकल्पना की है । इसके अतिरिक्त एक विद्या और कला के
निर्मुक्त होने का प्रतीकार्थ भी श्री राम के इस कथन में अपनी परिपूर्णता से उभरता
है –
‘सुषेण
पहले तुम राजवैद्य थे
अब तुम वैद्यराज हो ।‘
श्री राम का यह संयोजन जैसे सर्वथा एक निष्कलुष, निर्मल और लोककल्याणकारी विज्ञान को किसी अनधिकृत अत्याचारी से मुक्त कराने
के साथ ही उसे एक सार्वभौम सत्ता सौंपने का उपक्रम ही था । इस प्रकार यह ठीक कच के
द्वारा मरणान्तक पीड़ा सह शुक्राचार्य से देवों की रक्षा के लिए संजीवनी विद्या
प्राप्त करने जैसा एक अभियान ही ठहरता है । महाभारत की कथा बताती है कि
शुक्राचार्य से संजीवनी विद्या सीखने के लिए पहुंचे इंद्र पुत्र कच को राक्षसों ने
मार-जला कर उनकी भस्म को शुक्राचार्य को ही पिला दिया था तब शुक्राचार्य के उदर
में इस विद्या से जीवित हो वे विद्यावान होकर शुक्राचार्य के पेट को फाड़कर बाहर आए
और उन्हें जीवित भी कर दिया ।
श्री धर्मवीर भारती का काव्य-नाटक ‘अंधायुग’ महाभारत जहां पाठकों/दर्शकों को उद्वेलित
कर छोड़ देता है वहीं श्री दीपक के इस अनुष्ठान में नट-नटी,
सैनिकों, नागरिकों और राम के सैन्य दल की सक्रियता वैद्य के
ऐसे ‘समाज शास्त्र’ की रचना करती है जो
अपनी सुंदरता (वैद्य का सौन्दर्यशास्त्र) और धर्म सम्मतता (वैद्य का धर्मशास्त्र)
की निष्पत्ति में सर्व सुखान्तक बन जाती है ।
कोरोना की विश्व व्यापी महाव्याधि की पृष्ठभूमि में
लिखे गए इस काव्य नाटक को ‘तुलसी मानस भारती’ ने जनवरी 2021 के अपने वार्षिकांक में इसके पुस्तकाकार में आने के पहले
ही प्रकाशित किया था जिस पर अनेक अनुकूल प्रतिक्रियाएँ हमें प्राप्त हुईं। देश के
प्रख्यात और समादृत रचनाकार डा. देवेंद्र दीपक की इस महनीय कृति को समीक्षा दृष्टि
से एक बार पुनः स्मरण कर हम उनकी रचनाधर्मिता का प्रभूत अभिवादन करते हैं ।
35 ईडन गार्डन चूनाभट्टी, कोलार रोड, भोपाल 462016 (9425079072)
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