मानस शब्द-कोष क्रमावली
प्रभु श्री रामभद्र के चरणों में परम प्रीति रखने वाले बंधु
श्री ओम प्रकाशजी गुप्ता ने इस अनुष्ठानात्मक कार्य में अपनी अद्भुत क्षमता का
परिचय दिया है. उन्होंने सप्रेम मुझे इसके अनेक अंश भेजकर इस पर मेरी टिप्पणी
मांगकर अपने सौहार्द्य का ही परिचय दिया. मैंने स्वभावतः इस पर उनसे अनेकशः बात कर
अपना पूर्व समाधान किया है. तदनंतर मेरा इस ग्रन्थ पर मत इस प्रकार अवधारित होता है.
अपनी साहित्य साधनाकाल में मैंने अपने स्मरण के अनुसार यह पढ़ा था कि
किसी विदेशी भाषाविद् का कहना है कि गोस्वामी तुलसीदास ने हिंदी साहित्य को नए लगभग २७०००
शब्द प्रदान किये हैं . मैंने श्री गुप्तजी से उनके कोष की शब्द संख्या पूछने पर
ज्ञात किया कि इसमें लगभग १४००० शब्दों के सन्दर्भ उन्हें मिले हैं. उन्होंने यह भी
बताया कि उन्होंने अपना शोध केवल दोहा, चौपाई, सोरठा और छंदों तक ही सीमित रखा है.
स्पष्ट है कि उन्होंने मानस के २७ श्लोक और उनमें आये शब्दों को अपने कोष में नहीं
लिया है. १ वर्ष पूर्व हमारे तुलसी मानस प्रतिष्ठान, भोपाल में मनीषी विद्वान डा.
रामाधार शर्माजी ने इस सम्बन्ध में बहुत महत्वपूर्ण सूचनाएं दी थीं किन्तु वे मुझे
सम्पूर्णतया स्मरण नहीं आ रही थीं अतः डा. शर्मा से मैंने संपर्क साधकर उन्हें इस
प्रकार संजोया है –
मानस में चौपाई – ९२१८, दोहे ११७३, सोरठे ८७, छंद २२८ और श्लोक संख्या
२७ है. इसमें प्रयुक्त शब्द संख्या १,१६,७३३ और अक्षर हैं २,९१५८०. यह रामचरित
मानस की ही बात है. उनके अन्यान्य ग्रंथों का इसमें समावेश नहीं है.
श्री रामचरित मानस भगवान श्रीराम का वांग्मय विग्रह ही है. तुलसी की
सिद्ध शब्द साधना ने इसके प्रत्येक शब्द को मंत्रात्मक सामर्थ्य प्रदान की है.
उन्होंने स्वयं ही मानस में लिखा कि अर्थहीन और अनमिल होते हुए भी ‘महेश के
प्रताप’ से अनेक शब्द ‘साबर मंत्र’ हो जाते हैं. अतः इस ‘महेश मानस’ की रचना में
ऐसी शक्ति न होगी तो अन्यत्र कहाँ होगी?
मैंने ऐसे अनेक साधकों और मानस प्रेमियों का साक्षात्कार किया है जो
मानस की शब्द आवृत्ति पर अनेकशः विचार करते हैं. उदाहरण के लिए ‘करुणा निधान’ शब्द का छ
बार का प्रयोग, विशेषकर जानकीजी के समक्ष श्री हनुमान का यह नामोल्लेख कितना सटीक है. इसी
तरह यह धारणा कि रामायण में तीन चौपाइयों को छोड़कर कहीं भी ‘र’ या ‘म’ का अभाव
देखने को नहीं मिलता. अतः यदि उत्तरकाण्ड में ‘ झूठहि लेना झूठहि देना, झूठहि भोजन झूठ चबेना’
आता है तो असत्य आचरण के इस प्रसंग में क्रमशः अग्निधर्मा और मातृत्व के परम प्रतीक
वर्ण र’ और ‘म’ से उसे दूर ही रखा जाना योग्य है. अतः ऐसे लोगों की संख्या कम नहीं
है जो अपने लोक और परलोक की सिद्धि के लिए मानस की चौपाई और उसके सिद्ध शब्दों का
अनेकशः आश्रय लेते हैं.
मानस के इस शब्दानुक्रम कोष में पाठकों की ऐसी अनेक जिज्ञासाओं का
समाधान है जैसे मानस में ‘राम’ या ‘सीता’ शब्द की आवृत्ति कितनी है? वह शब्द कौनसा
है जिसकी आवृत्ति सर्वाधिक है ? एकाक्षरी शब्द कितने हैं? तथा संधि, उपसर्ग,
प्रत्यय और तुलसी की स्वयं की मौलिक प्रतिभा के आधार पर किं शब्दों ने हिन्दी भाषा
के विकास क्रम की रूपरेखा अवधारित की.
मानस के अनेक मूल संस्करण तो हैं ही, क्षेपक रामायण प्रसंग भी अनेक
हैं. डा. गुप्त ने सभी विवादों के परे रहते हुए गीता प्रेस गोरखपुर की रामायण का
ही आधार लिया गया है. इस संस्करण की सर्वव्यापकता की दृष्टि से यह निर्णय सर्वथा
उचित ही है.
श्री गुप्तजी भारत से दूर अमेरिका में रहकर मानस संबंधी अनेक शोध
कार्य में निरत हैं. कुछ पूर्व उन्होंने १००८ चौपाइयों की एक संक्षिप्त मानस
पुस्तिका भी प्रकाशित की थी जिसका जिज्ञासु भक्त जनों ने बहुशः स्वागत किया. मेरा
विश्वास है कि उनकी यह कृति भी मानस के सन्दर्भ और शोध कार्य में लगे लोगों के
अतिरिक्त सामान्य पाठक वर्ग में समादृत होगी.
प्रभुदयाल मिश्र,
२८ जनवरी २०१५
अध्यक्ष, महर्षि अगस्त्य वैदिक संस्थानम्, भोपाल, भारत
jay shree RAM
ReplyDeletePt g kripya sortha padhne ki vidhi bataye
ReplyDeleteजेहि सुमिरत सिंधि होइ, गण नायक करियर वदन
ReplyDeleteकरउ अनुग्रह सोइ, बुद्धि राशि शुभ गुण सदन
यह मानस का पहला। सोरठा है । इसके चार चरण हैं । पहले और तीसरे चरण ११-११ मात्राअों के और दूसरा तथा चौथा चरण १३-१३ मात्राओं का । दोहा इसका उलट है । हम इसी सोरठे को दोहे में तब्दील करते हैं -
गणनायक कविवर वदन, जो सुमिरत सिधि होइ
बुद्धि राशि शुभ गुण सदन, करउ अनुग्रह सोइ ।
और दो चौपाई कौन सी कृपया बतावे
ReplyDeleteइतना बचन सुना जब काना,किलकिलाई धावा बलवाना।
Deleteझूठइ लेना,झूठइ देना, झूठइ भोजन झूठ चबेना।।
ReplyDeleteराम चरित मानस के किस चौपाई में र , म , और न का प्रयोग नहीं किया गया है ?
ReplyDeleteदीख निषादनाथ भल टोलू। कहेउ बजाउ जुझाऊ ढोलू।
Deleteएतना कहत छींक भयी बांए। कहेउ सगुनिअन्ह खेत सुहाए ।।
Bina r aur m ki Chaupai kis Kand Mein Di Hui Hai
ReplyDeleteलेत चढ़ावत खैचत गाढ़े,काहू न लखा देख सब ठाढ़े॥ इस चाैपाई मे भी रा म नही आया है 🙏
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